गुरुवार, 7 जुलाई 2011

ना टोने ना टोटके ,ना तंतर ना मंतर,तुम्हारी हर समस्या हल है तुहारे अपने रिश्तों के अंदर

हमारे ऋषि मुनियों ने अदभुत अनुसंधान किए हैं। हमारे रिश्तों को ही हमारी समस्त समस्याओं का समाधान का माध्यम बनाया है। ना टोने ना टोटके ,ना तंतर ना मंतर,तुम्हारी हर समस्या हल है तुहारे अपने रिश्तों के अंदर। हमारे पास हर धर्म के लोग आते हैं और हमें उन्हे समस्याओं का हल भी बताना पड़ता है । कई बार समाधान करने मे लोगों की आस्था आड़े आती है क्योंकि हर धर्म की एक अलग उपासना पद्धति है। इसलिए हमे समाधान की ऐसी विधि खोजनी पड़ी जो सर्वथा प्रामाणिक और मान्यता प्राप्त हो। उदाहरण के तौर पर यदि किसी जातक को सूर्य ग्रह की उपासना करना हो या मंत्र जाप, अर्घ्य इत्यादि कराना हो परंतु व्यक्ति को भाषा,आस्था संबन्धि समस्या हो तो क्या करें?ऐसे मे हम उसे रोज़ सुबह अपने पिता को जल देने को कहेंगे तो वह सहर्ष स्वीकार कर लेगा। क्योंकि इससे उसकी आस्था मे भी फर्क नहीं पड़ता। ऐसे समय में यह विधि अत्यधिक कारगर सिद्ध हुई। नवग्रह हमारे परिवार के सदस्यों जैसे हैं जिस प्रकार हर एक परिवार में माता-पिता, भाई-बहन और अन्य रिश्तेदार होते हैं, उसी तरह ऋषि-मुनियों ने नवग्रहों को हमारे परिवार के सदस्यों की तरह जोड़कर उनका अध्ययन किया है। ग्रहों को मज़बूत बनाने के लिए रिश्तों को सहेजें, प्रेम बढ़ाएँ। कुंडली के बारह भावों की विवेचना कर आप जान सकते हैं कि प्रत्येक भाव किसी न किसी रिश्ते का प्रतिनिधित्व करता है तथा प्रत्येक ग्रह इंसानी रिश्तों से संबंध रखता है और यदि कुंडली में कोई विशेष ग्रह कमजोर हो तो उस ग्रह से संबंधित रिश्तों को मजबूत करके भी ग्रह को दुरुस्त किया जा सकता है। आइए, जानें हम भी कैसे खुश रह सकते हैं--
सूर्य : सूर्य पिता है। यह राज्य और आत्मबल का प्रतीक है। याद कीजिए जब आप बचपन मे अपने पिता की उंगली पकड़कर चलते थे। कितना आत्मबल आपमे होता था। आपको लगता संसार मे आप सबसे सुरक्षित है। एक बड़ा ही रोचक तथ्य है। मान लीजिये अचानक आपके सामने शेर आ जाय तब आपके मुख क्या निकलेगा –अरे बाप रे ! या आपको चोट लग जाय तो – ऊई माँ ! क्या ये आपको किसी ने सिखाया है, नही ना। अर्थात जब भी हम भय की स्थिति में होते हैं तो बाप(पिता) को और दुख के समय माँ को याद करते हैं। सूर्य की कृपा के लिए हमें उनकी आराधना करना चाहिए। सूर्य की कृपा मिलने पर जातक की कीर्ति बढ़ती है, दुःख कम हो जाते हैं,सरकार की ओर से अनुकूलता मिलती है। यह राज्य का भी प्रतिनिधि है। सूर्य की स्थिति मजबूत करनेके लिए पिता,ताऊ से रिश्ते मजबूत रखना चाहिए ।
चन्द्रमा : चन्द्रमा माता है, अतः जिस प्रकार माँ की सेवा करने से मन को शांति मिलती है, शीतल जल ग्रहण करने से हृदय में ठंडक पड़ती है, उसी प्रकार चन्द्रमा की आराधना करने से जीवन में शीतलता मिलती है। हम व्यावहारिक जीवन मे भी देखते हैं की जिन बच्चों को माँ का लाड़ प्यार ज़्यादा मिलता है उनमे मनोबल बढ़ा हुआ रहता है। माँ की नज़रों की ताक़त तो असीम होती है, ईश्वर की ताक़त से भी बड़ी ताक़त होती है ये तो महाभारत काल से ही ज्ञात है जब गांधारी, दुर्योधन को अपने सम्मुख बुलाती हैं। यहाँ भगवान को भी माँ की ताक़त से बचने के लिए छल का सहारा लेना पड़ा। यदि चन्द्रमा की कृपा न हो तो जातक सब सुखों के रहते भी मन में दुःखी रहता है।माँ से रिश्ते मजबूत होने पर चंद्रमा स्वयं मजबूत होता है और जीवन में संघर्ष कम हो जाता है।
मंगल : मंगल छोटे भाई-बहन है। मंगल पराक्रम का ग्रह है। इसकी कृपा न होने पर जातक के पराक्रम में कमी आती है। सभी प्रकार के हथियार और औजार आदि का प्रतिनिधि है मंगल। यह ऊर्जा और आत्मविश्वास का प्रतीक है। भाई का पूर्ण सहयोग का उदाहरण तो लक्ष्मण का है कैसे भगवान राम ने १४ वर्ष का वनवास पूर्ण किया और रावण को हराया।   अपने अंदर साहस,ऊर्जा,आत्मविश्वास के लिए भाई-बहनो से संबंध सुधरना आवश्यक है।
बुध : बहन, बुआ, मौसी,ननिहाल आदि है बुध। बुध वाणी,अभिव्यक्ति का भी कारक है। यदि बुध शुभ होंगे तो आपके शब्द, आपकी वाणी खाली नहीं जाएगी। बुध को प्रसन्न रखें और फिर जीवन में उसका सकारात्मक असर देखिए।हमने व्यावहारिक जीवन मे देखा भी है की जिन जातकों को मामा,मौसी,ननिहाल का स्नेह ज़्यादा मिलता है उनमे वाणी और अभिव्यक्ति की क्षमता बढ़ जाती है।
बृहस्पति : गुरु,शिक्षक,बड़े भाई हैं बृहस्पति। इसके अलावा उन्हें सलाहकार का भी स्थान प्राप्त है। यदि जातक पर उनकी कृपा है तो उन्हें अच्छी सलाह मिलती रहेगी। उनकी आराधना करने वाले का चरित्र और कीर्ति उज्ज्वल होती है। गुरु ज्ञान का कारक होता है।
स्त्री की कुंडली मे गुरु पति का भी कारक होता है । गुरु की कृपा का चमत्कार तो चन्द्रगुप्त मौर्य और सिकंदर के रूप में हमारे सामने है। कैसे एक साधारण से गड़रिये को भारतवर्ष का सम्राट बना दिया। ये चाणक्य और अरस्तु जैसे गुरु थे, जिनकी वजह से चन्द्रगुप्त और सिकंदर जैसे विजेजा इस संसार को मिले।
शुक्र : पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति है शुक्र। उन्हें एक-दूसरे का आदर करना ही चाहिए। शुक्र की कृपा होने पर घर में वैभव की प्राप्ति होती है। घर को भौतिक साधनों से सम्पन्न करने के लिए शुक्र को प्रसन्न रखना चाहिए। शुक्र से स्त्री का विचार किया जाता है। कला में वृद्धि के लिए शुक्र की प्रबलता जरूरी है हमने व्यावहारिक जीवन में देखा है की जिन लोगों के अपनी स्त्री से संबंध अच्छे होते हैं, वे ही सही मायने में सुखी होते हैं । इसलिए सुख प्राप्ति के लिए स्त्री का आदर आवश्यक है।
शनि : शनि घर का मुखिया है, जो एक सेवक की भांति आपको सुखी रखेगा और यदि उसकी अनदेखी करोगे तो दुःख ही दुःख मिलेगा। यह सेवकों का भी प्रतिनिधि है। जो लोग अपने घर के मुखिया और दफ्तर/ कारखानों में काम करने वाले सेवकों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते, उन्हें शनि देवता दुःखी करते हैं। शनि महाराज के प्रसन्न होने पर जीवन में धैर्य,सफलता की प्राप्ति होती है, अतः अपने अधिनास्थों ,नौकरों से संबंध सदैव अच्छे बना कर रखें।
राहु : ससुराल के सभी लोग सास-ससुर आदि राहु हैं। ससुराल वालों से संबंध अच्छा रखने वालों पर राहु प्रसन्न रहते हैं। कुंडली में राहू के विपरीत होने पर ससुराल वालों को प्रसन्न रखें। राहु से दादा का विचार किया जाता है। राहू हमारी भौतिक इच्छाएं हैं। अपने दादा को प्रसन्न करोगे तो राहू तुम्हारी समस्त भौतिक इच्छाएँ पूर्ण करेंगे।
केतु : नाना, संतानें केतु हैं। केतू हमारी आध्यात्मिक इच्छाएँ हैं। यदि अपने नाना और संतान को प्रसन्न रखोगे तो आपकी समस्त आध्यात्मिक इच्छाएँ केतू पूर्ण करेंगे। केतु की प्रसन्नता के लिए अपनी संतानों के प्रति उत्तरदायित्वों का पालन नैतिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर करना चाहिए। केतु शुभ स्थिति में हो तो जातक को दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है। केतु मोक्ष का कारक भी माना जाता है। दूसरी तरफ मोक्ष भी संतान से ही प्राप्त होता है।
रिश्तों का स्नेह ग्रहों को बनाएँ अनुकूल विशेष:यदि बचपन से ही रिश्तों में स्नेह सौहार्द्र बनाकर रखा जाए तो ग्रह स्वयं ही मजबूती पाने लगते हैं।

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