पितृ दोष एवं उसका निवारण
कुण्डली मे नौवें भाव से भाग्य की विवेचना की जाती है। यह भाव पिता और हमारे पितरों को भी निरूपित करता है। अगर नौवा भाव दूषित हो जाय या सूर्य, राहू युति नौवें भाव मे हो तो जातक को पितृ दोष से ग्रसित माना जाता है। वैदिक ज्योतिष के आधार पर ये कहा जाता है की सूर्य राहू युति से भाव की शुभता नष्ट हो जाती है। ऐसा माना जाता है की पूर्व जन्मो के पाप कर्मो की वजह से व्यक्ति पितृ दोष से ग्रसित होता है। आइये अब ये जानने का प्रयास करते हैं की पितृ दोष क्या है और उसका निवारण क्या है?
हमारे जीवन सुख-दुख समिश्रण है। मनुष्य के जीवन मे कई तरह के दुख होते हैं जैसे भाग्य का साथ ना देना, हर कार्य मे असफलता, संतानहीनता, धन हानि, कार्यक्षेत्र मे असफलता या पारिवारिक विवादों का उत्पन्न होना इत्यादि। यह सब दुख पितृदोष की वजह से होते हैं।
पितृदोष क्या है ?
पितर अर्थात हमारे पूर्वज। जब हमारे पूर्वजों मे किसी की अकाल मृत्यु हो जाती है या उन्हे मोक्ष प्राप्त नहीं हुआ हो तो ऐसी परिस्थिति मे उनकी शांति के लिए पितृदोष की शांति आवश्यक है। ऐसा माना जाता है की जब तक पितरों की इच्छाएँ पूरी ना हो जाएँ या मोक्ष ना प्राप्त हो जाए। अथवा नई पीढ़ी द्वारा उनका तर्पण, पूजन ना करने पर भी जातक के जीवन मे रुकावटें, असफलता का सामना करना पड़ता है।
पितृदोष क्यों होता है?
जब आपके परिवार मे किसी की अकाल मृत्यु हो जाए या बार-बार अकाल मृत्यु हो। अपने पितरों का पिंडदान, तर्पण, या भोग अर्पित नहीं करने से पितृदोष होता। अपने धार्मिक, आध्यात्मिक रीति रिवाजों मे उनको याद ना करने पर भी पितर कुपित हो जाते हैं। गौ हत्या और भ्रूण हत्या से भी पितृदोष लगता है। व्यक्ति स्वयं या उसके परिवार के लोगों मे नास्तिकता हो, पितरपक्ष मे पूर्वजों को पानी ना देना (हर धर्म मे विशिष्ट समय पर पूर्वजों को याद करने की प्रथा है)। इन सब परिस्तिथियों से जातक की कुंडली मे नौवा भाव सूर्य+राहू से दूषित हो जाता है। इससे जातक पितृदोष से ग्रसित हो जाता है।
नौवा भाव पिता का भाव है। सूर्य पिता का कारक है, सूर्य उन्नति,आयु,अध्यात्म का भी कारक है। राहू क्रूर और छाया गृह है। जब भी सूर्य के साथ आता है तो ग्रहणदोष और पितृदोष का निर्माण हो जाता है। अगर कुंडली मे यह योग है तो जातक का भाग्य साथ नहीं देता, उसे हर कार्य मे संघर्ष करना पड़ता है। हिन्दू पुजा विधान मे देवताओं के पूर्व पितर को तर्पण, पूजन का विधान है। इसलिए यर बहुत आवश्यक है की देवताओं के पूर्व पितर को प्रसन्न किया जय। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष मे पितर को तर्पण का विधान है। पितृमोक्ष अमावस्या तक यह पर्व चलता है। इस वर्ष २७ सितंबर को यह पर्व आ रहा है।
पितृदोष के निवारण के उपाय-
पितरों को तृप्त करने के लिए आश्विन मास के कृष्णपक्ष मे जिस तिथि को पूर्वजों का निर्वाण हुआ हो उस तिथि को तिल,जौ,पुष्प,कुश,गंगाजल या शुद्ध जल तर्पण, पिंडदान और पूजन करना चाहिए। उसके बाद गरीब ब्राह्मण को भोजन,वस्त्र,फल एवं दान करना चाहिए। गाय, कौआ, चींटी, काक, वृक्ष को भी भोग लगाना चाहिए।
१. जिन लोगों को अपने पितरों की अंतिम तिथि ज्ञात ना हो वे लोग पितृमोक्ष अमावस्या को यह प्रक्रिया का सकते हैं।
२. जो लोग पीपल के वृक्ष को पूजते या जल देते हैं, या सोमवती अमावस्या को खीर अपने पितरों को अर्पित करते हैं, या हर अमावस्या को ब्राह्मण को वस्त्र,भोजन दान करते हैं, उन्हे पितृदोष के विपरीत प्रभाव से छुटकारा मिल जाता है।
३. हर अमावस्या को गाय के उपले (कंडे, गोबरी) की राख पर खीर रखकर दक्षिण दिशा की ओर मुखकर पितरों से अपनी गलती की क्षमा याचना करें।
४. अपने पिता एवं बड़े-बुज़ुर्गों का आदर करें, उनके आशीर्वाद से सूर्य की स्थिति मजबूत होती है।
५. सूर्योदय के समय सूर्य को देखकर गायत्री मंत्र का उच्चारण करें, इससे आपकी कुंडली मे सूर्य की स्थिति मजबूत होगी।
६. सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक्य भी धरण कर सकते हैं, बशर्ते किसी योग्य ज्योतिषी द्वारा पहले कुंडली जांच लें।
७. पितृपक्ष मे अपने पितरों की याद मे वृक्ष लगाने पर भी पितृदोष से राहत मिलती है
bahut achi jankari hai thanxxxxx
जवाब देंहटाएंबढ़िया और ज्ञान सभर लेख ...धन्यवाद ....
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