गुरुवार, 7 जुलाई 2011

ना टोने ना टोटके ,ना तंतर ना मंतर,तुम्हारी हर समस्या हल है तुहारे अपने रिश्तों के अंदर

हमारे ऋषि मुनियों ने अदभुत अनुसंधान किए हैं। हमारे रिश्तों को ही हमारी समस्त समस्याओं का समाधान का माध्यम बनाया है। ना टोने ना टोटके ,ना तंतर ना मंतर,तुम्हारी हर समस्या हल है तुहारे अपने रिश्तों के अंदर। हमारे पास हर धर्म के लोग आते हैं और हमें उन्हे समस्याओं का हल भी बताना पड़ता है । कई बार समाधान करने मे लोगों की आस्था आड़े आती है क्योंकि हर धर्म की एक अलग उपासना पद्धति है। इसलिए हमे समाधान की ऐसी विधि खोजनी पड़ी जो सर्वथा प्रामाणिक और मान्यता प्राप्त हो। उदाहरण के तौर पर यदि किसी जातक को सूर्य ग्रह की उपासना करना हो या मंत्र जाप, अर्घ्य इत्यादि कराना हो परंतु व्यक्ति को भाषा,आस्था संबन्धि समस्या हो तो क्या करें?ऐसे मे हम उसे रोज़ सुबह अपने पिता को जल देने को कहेंगे तो वह सहर्ष स्वीकार कर लेगा। क्योंकि इससे उसकी आस्था मे भी फर्क नहीं पड़ता। ऐसे समय में यह विधि अत्यधिक कारगर सिद्ध हुई। नवग्रह हमारे परिवार के सदस्यों जैसे हैं जिस प्रकार हर एक परिवार में माता-पिता, भाई-बहन और अन्य रिश्तेदार होते हैं, उसी तरह ऋषि-मुनियों ने नवग्रहों को हमारे परिवार के सदस्यों की तरह जोड़कर उनका अध्ययन किया है। ग्रहों को मज़बूत बनाने के लिए रिश्तों को सहेजें, प्रेम बढ़ाएँ। कुंडली के बारह भावों की विवेचना कर आप जान सकते हैं कि प्रत्येक भाव किसी न किसी रिश्ते का प्रतिनिधित्व करता है तथा प्रत्येक ग्रह इंसानी रिश्तों से संबंध रखता है और यदि कुंडली में कोई विशेष ग्रह कमजोर हो तो उस ग्रह से संबंधित रिश्तों को मजबूत करके भी ग्रह को दुरुस्त किया जा सकता है। आइए, जानें हम भी कैसे खुश रह सकते हैं--
सूर्य : सूर्य पिता है। यह राज्य और आत्मबल का प्रतीक है। याद कीजिए जब आप बचपन मे अपने पिता की उंगली पकड़कर चलते थे। कितना आत्मबल आपमे होता था। आपको लगता संसार मे आप सबसे सुरक्षित है। एक बड़ा ही रोचक तथ्य है। मान लीजिये अचानक आपके सामने शेर आ जाय तब आपके मुख क्या निकलेगा –अरे बाप रे ! या आपको चोट लग जाय तो – ऊई माँ ! क्या ये आपको किसी ने सिखाया है, नही ना। अर्थात जब भी हम भय की स्थिति में होते हैं तो बाप(पिता) को और दुख के समय माँ को याद करते हैं। सूर्य की कृपा के लिए हमें उनकी आराधना करना चाहिए। सूर्य की कृपा मिलने पर जातक की कीर्ति बढ़ती है, दुःख कम हो जाते हैं,सरकार की ओर से अनुकूलता मिलती है। यह राज्य का भी प्रतिनिधि है। सूर्य की स्थिति मजबूत करनेके लिए पिता,ताऊ से रिश्ते मजबूत रखना चाहिए ।
चन्द्रमा : चन्द्रमा माता है, अतः जिस प्रकार माँ की सेवा करने से मन को शांति मिलती है, शीतल जल ग्रहण करने से हृदय में ठंडक पड़ती है, उसी प्रकार चन्द्रमा की आराधना करने से जीवन में शीतलता मिलती है। हम व्यावहारिक जीवन मे भी देखते हैं की जिन बच्चों को माँ का लाड़ प्यार ज़्यादा मिलता है उनमे मनोबल बढ़ा हुआ रहता है। माँ की नज़रों की ताक़त तो असीम होती है, ईश्वर की ताक़त से भी बड़ी ताक़त होती है ये तो महाभारत काल से ही ज्ञात है जब गांधारी, दुर्योधन को अपने सम्मुख बुलाती हैं। यहाँ भगवान को भी माँ की ताक़त से बचने के लिए छल का सहारा लेना पड़ा। यदि चन्द्रमा की कृपा न हो तो जातक सब सुखों के रहते भी मन में दुःखी रहता है।माँ से रिश्ते मजबूत होने पर चंद्रमा स्वयं मजबूत होता है और जीवन में संघर्ष कम हो जाता है।
मंगल : मंगल छोटे भाई-बहन है। मंगल पराक्रम का ग्रह है। इसकी कृपा न होने पर जातक के पराक्रम में कमी आती है। सभी प्रकार के हथियार और औजार आदि का प्रतिनिधि है मंगल। यह ऊर्जा और आत्मविश्वास का प्रतीक है। भाई का पूर्ण सहयोग का उदाहरण तो लक्ष्मण का है कैसे भगवान राम ने १४ वर्ष का वनवास पूर्ण किया और रावण को हराया।   अपने अंदर साहस,ऊर्जा,आत्मविश्वास के लिए भाई-बहनो से संबंध सुधरना आवश्यक है।
बुध : बहन, बुआ, मौसी,ननिहाल आदि है बुध। बुध वाणी,अभिव्यक्ति का भी कारक है। यदि बुध शुभ होंगे तो आपके शब्द, आपकी वाणी खाली नहीं जाएगी। बुध को प्रसन्न रखें और फिर जीवन में उसका सकारात्मक असर देखिए।हमने व्यावहारिक जीवन मे देखा भी है की जिन जातकों को मामा,मौसी,ननिहाल का स्नेह ज़्यादा मिलता है उनमे वाणी और अभिव्यक्ति की क्षमता बढ़ जाती है।
बृहस्पति : गुरु,शिक्षक,बड़े भाई हैं बृहस्पति। इसके अलावा उन्हें सलाहकार का भी स्थान प्राप्त है। यदि जातक पर उनकी कृपा है तो उन्हें अच्छी सलाह मिलती रहेगी। उनकी आराधना करने वाले का चरित्र और कीर्ति उज्ज्वल होती है। गुरु ज्ञान का कारक होता है।
स्त्री की कुंडली मे गुरु पति का भी कारक होता है । गुरु की कृपा का चमत्कार तो चन्द्रगुप्त मौर्य और सिकंदर के रूप में हमारे सामने है। कैसे एक साधारण से गड़रिये को भारतवर्ष का सम्राट बना दिया। ये चाणक्य और अरस्तु जैसे गुरु थे, जिनकी वजह से चन्द्रगुप्त और सिकंदर जैसे विजेजा इस संसार को मिले।
शुक्र : पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति है शुक्र। उन्हें एक-दूसरे का आदर करना ही चाहिए। शुक्र की कृपा होने पर घर में वैभव की प्राप्ति होती है। घर को भौतिक साधनों से सम्पन्न करने के लिए शुक्र को प्रसन्न रखना चाहिए। शुक्र से स्त्री का विचार किया जाता है। कला में वृद्धि के लिए शुक्र की प्रबलता जरूरी है हमने व्यावहारिक जीवन में देखा है की जिन लोगों के अपनी स्त्री से संबंध अच्छे होते हैं, वे ही सही मायने में सुखी होते हैं । इसलिए सुख प्राप्ति के लिए स्त्री का आदर आवश्यक है।
शनि : शनि घर का मुखिया है, जो एक सेवक की भांति आपको सुखी रखेगा और यदि उसकी अनदेखी करोगे तो दुःख ही दुःख मिलेगा। यह सेवकों का भी प्रतिनिधि है। जो लोग अपने घर के मुखिया और दफ्तर/ कारखानों में काम करने वाले सेवकों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते, उन्हें शनि देवता दुःखी करते हैं। शनि महाराज के प्रसन्न होने पर जीवन में धैर्य,सफलता की प्राप्ति होती है, अतः अपने अधिनास्थों ,नौकरों से संबंध सदैव अच्छे बना कर रखें।
राहु : ससुराल के सभी लोग सास-ससुर आदि राहु हैं। ससुराल वालों से संबंध अच्छा रखने वालों पर राहु प्रसन्न रहते हैं। कुंडली में राहू के विपरीत होने पर ससुराल वालों को प्रसन्न रखें। राहु से दादा का विचार किया जाता है। राहू हमारी भौतिक इच्छाएं हैं। अपने दादा को प्रसन्न करोगे तो राहू तुम्हारी समस्त भौतिक इच्छाएँ पूर्ण करेंगे।
केतु : नाना, संतानें केतु हैं। केतू हमारी आध्यात्मिक इच्छाएँ हैं। यदि अपने नाना और संतान को प्रसन्न रखोगे तो आपकी समस्त आध्यात्मिक इच्छाएँ केतू पूर्ण करेंगे। केतु की प्रसन्नता के लिए अपनी संतानों के प्रति उत्तरदायित्वों का पालन नैतिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर करना चाहिए। केतु शुभ स्थिति में हो तो जातक को दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है। केतु मोक्ष का कारक भी माना जाता है। दूसरी तरफ मोक्ष भी संतान से ही प्राप्त होता है।
रिश्तों का स्नेह ग्रहों को बनाएँ अनुकूल विशेष:यदि बचपन से ही रिश्तों में स्नेह सौहार्द्र बनाकर रखा जाए तो ग्रह स्वयं ही मजबूती पाने लगते हैं।

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

रुद्राक्ष-- शिव के आँख के तारे


रुद्राक्ष का महत्व
रुद्राक्ष
देवता             
मंत्र
१ मुखी
शिव
1-ॐ नमः शिवाय । 2 –ॐ ह्रीं नमः
२ मुखी
अर्धनारीश्वर
ॐ नमः
३ मुखी
अग्निदेव
ॐ क्लीं नमः
४ मुखी
ब्रह्मा,सरस्वती
ॐ ह्रीं नमः
५ मुखी
कालाग्नि रुद्र
ॐ ह्रीं नमः
६ मुखी
कार्तिकेय, इन्द्र,इंद्राणी
ॐ ह्रीं हुं नमः
७ मुखी
नागराज अनंत,सप्तर्षि,सप्तमातृकाएँ
ॐ हुं नमः
८ मुखी
भैरव,अष्ट विनायक
ॐ हुं नमः
९ मुखी
माँ दुर्गा
१-ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः २-ॐ ह्रीं हुं नमः
१० मुखी
विष्णु
१-ॐ नमो भवाते वासुदेवाय २-ॐ ह्रीं नमः
११ मुखी
एकादश रुद्र
१-ॐ तत्पुरुषाय विदमहे महादेवय धीमही तन्नो रुद्रः प्रचोदयात २-ॐ ह्रीं हुं नमः  
१२ मुखी
सूर्य
१-ॐ ह्रीम् घृणिः सूर्यआदित्यः श्रीं २-ॐ क्रौं क्ष्रौं रौं नमः
१३ मुखी
कार्तिकेय, इंद्र
१-ऐं हुं क्षुं क्लीं कुमाराय नमः २-ॐ ह्रीं नमः
१४ मुखी
शिव,हनुमान,आज्ञा चक्र
ॐ नमः
१५ मुखी
पशुपति
ॐ पशुपत्यै नमः
१६ मुखी
महामृत्युंजय ,महाकाल
ॐ ह्रौं जूं सः त्र्यंबकम् यजमहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय सः जूं ह्रौं ॐ
१७ मुखी
विश्वकर्मा ,माँ कात्यायनी
ॐ विश्वकर्मणे नमः
१८ मुखी
माँ पार्वती
ॐ नमो भगवाते नारायणाय
१९ मुखी
नारायण
ॐ नमो भवाते वासुदेवाय
२० मुखी
ब्रह्मा
ॐ सच्चिदेकं ब्रह्म
२१ मुखी
कुबेर
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा 
आपकी ग्रह-राशि-नक्षत्र के  अनुसार रुद्राक्ष धारण करें

ग्रह  
राषि
नक्षत्र
लाभकारी रुद्राक्ष
मंगल  
मेष+वृश्चिक
मृगषिरा-चित्रा-धनिष्ठा
३ मुखी
शुक्र  
वृषभ+तुला
भरणी-पू॰फाल्गुनी-पू॰षाढ़ा
६ मुखी,१३ मुखी,१५ मुखी
बुध  
मिथुन+कन्या
आष्लेषा-ज्येष्ठा-रेवती
४ मुखी
चन्द्र  
कर्क
रोहिणी-हस्त-श्रवण
२ मुखी, गौरी-शंकर रुद्राक्ष
सूर्य   
सिंह
कृत्तिका-उ॰फाल्गुनी-उ॰षाढ़ा
 मुखी, १२ मुखी
गुरु  
धनु-मीन
पुनर्वसु-विषाखा-पू॰भाद्रपद
५ मुखी
शनि  
मकर-कुंभ
पुष्य-अनुराधा-उ॰भाद्रपद
७ मुखी, १४ मुखी
राहु  
-
आर्द्रा-स्वाति-षतभिषा
८ मुखी, १८ मुखी
केतु   
-
अष्विनी-मघा-मूल
९ मुखी,१७ मुखी
  
नवग्रह दोष निवारणार्थ
१० मुखी, २१ मुखी
विषेष : १० मुखी और ११ मुखी किसी एक ग्रह का प्रतिनिधित्व नहीं करते।बल्कि नवग्रहों के दोष निवारणार्थ प्रयोग मे लाय जाते हैं ।
                    जन्म लग्न के अनुसार रुद्राक्ष धारण
भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रत्न धरण करने के लिए जन्म लग्न का उपयोग सर्वाधिक प्रचलित है । रत्न प्रकृति का एक अनुपम उपहार है। आदि काल से ग्रह दोषों तथा अन्य समस्याओं से मुक्ति हेतु रत्न धारण करने की परंपरा है।आपकी कुंडली के अनुरूप सही और दोषमुक्त रत्न धारण करना फलदायी होता है। अन्यथा उपयोग करने पर यह नुकसानदेह भी हो सकता है। वर्तमान समय में शुद्ध एवं दोषमुक्त रत्न बहुत कीमती हो गए हैं, जिससे वे जनसाधारण की पहुंच के बाहर हो गए हैं। अतः विकल्प के रूप में रुद्राक्ष धारण एक सरल एवं सस्ता उपाय है। साथ ही रुद्राक्ष धारण से कोई नुकसान भी नहीं है, बल्कि यह किसी न किसी रूप में जातक को लाभ ही प्रदान करता है। क्योंकि रुद्राक्ष पर ग्रहों के साथ साथ देवताओं का वास माना जाता है।     कुंडली में त्रिकोण अर्थात लग्न, पंचम एवं नवम भाव सर्वाधिक बलशाली माना गया है। लग्न अर्थात जीवन, आयुष्य एवं आरोग्य, पंचम अर्थात बल, बुद्धि, विद्या एवं प्रसिद्धि, नवम अर्थात भाग्य एवं धर्म। अतः लग्न के अनुसार कुंडली के त्रिकोण भाव के स्वामी ग्रह कभी अशुभ फल नहीं देते, अशुभ स्थान पर रहने पर भी मदद ही करते हैं । इसलिए इनके रुद्राक्ष धारण करना सर्वाधिक शुभ है। इस संदर्भ में एक संक्षिप्त विवरण यहां तालिका में प्रस्तुत है।हमने कई बार देखा है कि कुंडली में शुभ-योग मौजूद होने के बावजूद उन योगों से संबंधित ग्रहों के रत्न धारण करना लग्नानुसार अशुभ होता है। उदाहरण के रूप में मकर लग्न में सूर्य अष्टमेश हो, तो अशुभ और चंद्र सप्तमेश हो, तो मारक होता है। मंगल चतुर्थेष-एकादषेष होने पर भी लग्नेष शनि का शत्रु होने के कारण अशुभ नहीं होता। गुरु तृतीयेश-व्ययेश होने के कारण अत्यंत अशुभ होता है। ऐसे में मकर लग्न के जातकों के लिए माणिक्य, मोती, मूंगा और पुखराज धारण करना अशुभ है। परंतु यदि मकर लग्न की कुंडली में बुधादित्य ,गजकेसरी, लक्ष्मी जैसा शुभ योग हो और वह सूर्य, चंद्र, मंगल या गुरु से संबंधित हो, तो इन योगों के शुभाशुभ प्रभाव में वृद्धि हेतु इन ग्रहों से संबंधित रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, अर्थात गजकेसरी योग के लिए दो और पांच मुखी, लक्ष्मी योग के लिए दो और तीन मुखी और बुधादित्य योग के लिए चार और एक मुखी रुद्राक्ष।रुद्राक्ष ग्रहों के शुभफल सदैव देते हैं परंतु अशुभफल नहीं देते।  
लग्न  
त्रिकोणाधिपति ग्रह  
   लाभकारी रुद्राक्ष
मेष+सिंह+धनु
मंगल-सूर्य-गुरु  
३ मुखी + 1 या १२ मुखी + ५ मुखी
वृषभ+मिथुन+कन्या+तुला+मकर +कुम्भ  
शुक्र-बुध-शनि
६ या १३ मुखी+४ मुखी+७ या १४ मुखी
कर्क+वृश्चिक+मीन
चंद्र-मंगल-गुरु  
२ मुखी + ३ मुखी + ५ मुखी
अंकषास्त्र के अनुसार रुद्राक्ष-धारण
जिन जातकों जन्म लग्न, राशि, नक्षत्र नहीं मालूम है वे अंक ज्योतिष के अनुसार जातक को अपने मूलांक, भाग्यांक और नामांक के अनुरूप रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं। 1 से ९ तक के अंक मूलांक होते हैं। प्रत्येक अंक किसी ग्रह विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, जैसे अंक 1 सूर्य, २ चंद्र, ३ गुरु, ४ राहु, ५ बुध, ६ शुक्र, ७ केतु, ८ शनि और ९ मंगल का। अतः जातक को मूलांक, भाग्यांक और नामांक से संबंधित ग्रह के रुद्राक्ष धारण करने चाहिए।
आप अपने कार्य-क्षेत्र के अनुसार भी रुद्राक्ष धारण का सकते हैं
कुछ लोगों के पास जन्म कुंडली इत्यादि की जानकारी नहीं होती वे लोग अपने कार्यक्षेत्र के अनुसार भी रुद्राक्ष का लाभ उठा सकते हैं । कार्य की प्रकृति के अनुरूप रुद्राक्ष-धारण करना कैरियर के सर्वांगीण विकास हेतु शुभ एवं फलदायी होता है। किस कार्य क्षेत्र के लिए कौन सा रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, इसका एक संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है।

    नेता-मंत्री-विधायक सांसदों के लिए - 1 और १४ मुखी।
    प्रशासनिक अधिकारियों के लिए       - 1 और १४ मुखी।
    जज एवं न्यायाधीशों के लिए - २ और १४ मुखी।
    वकील के लिए - , ६ और १३ मुखी।
    बैंक मैनेजर के लिए - ११ और १३ मुखी।
    बैंक में कार्यरत कर्मचारियों के लिए - ४ और ११ मुखी।
    चार्टर्ड एकाउन्टेंट एवं कंपनी सेक्रेटरी के लिए - , , ८ और १२ मुखी।
    एकाउन्टेंट एवं खाता-बही का कार्य करने वाले कर्मचारियों के लिए - ४ और १२ मुखी।
    पुलिस अधिकारी के लिए - ९ और १३ मुखी।
    पुलिस/मिलिट्री सेवा में काम करने वालों के लिए - ४ और ९ मुखी।
    डॉक्टर एवं वैद्य के लिए - , , ८ और ११ मुखी।
    फिजीशियन (डॉक्टर) के लिए - १० और ११ मुखी।
    सर्जन (डॉक्टर) के लिए - १०, १२ और १४ मुखी।
    नर्स-केमिस्ट-कंपाउण्डर के लिए - ३ और ४ मुखी।
    दवा-विक्रेता या मेडिकल एजेंट के लिए - , ७ और १० मुखी।
    मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के लिए - ३ और १० मुखी।
    मेकैनिकल इंजीनियर के लिए - १० और ११ मुखी।
    सिविल इंजीनियर के लिए - ८ और १४ मुखी।
    इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के लिए - ७ और ११ मुखी।
    कंप्यूटर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के लिए - १४ मुखी और गौरी-शंकर।
    कंप्यूटर हार्डवेयर इंजीनियर के लिए - ९ और १२ मुखी।
    पायलट और वायुसेना अधिकारी के लिए - १० और ११ मुखी।
    जलयान चालक के लिए - ८ और १२ मुखी।
    रेल-बस-कार चालक के लिए - ७ और १० मुखी।
    प्रोफेसर एवं अध्यापक के लिए - , ६ और १४ मुखी।
    गणितज्ञ या गणित के प्रोफेसर के लिए - , , ७ और ११ मुखी।
    इतिहास के प्रोफेसर के लिए - , ११ और ७ या १४ मुखी।
    भूगोल के प्रोफेसर के लिए - , ४ और ११ मुखी।
    क्लर्क, टाइपिस्ट, स्टेनोग्रॉफर के लिए - , , ८ और ११ मुखी।
    ठेकेदार के लिए - ११, १३ और १४ मुखी।
    प्रॉपर्टी डीलर के लिए - , , १० और १४ मुखी।
    दुकानदार के लिए - १०, १३ और १४ मुखी।
    मार्केटिंग एवं फायनान्स व्यवसायिओं के लिए - , १२ और १४ मुखी।
    उद्योगपति के लिए - १२ और १४ मुखी।
    संगीतकारों-कवियों के लिए - ९ और १३ मुखी।
    लेखक या प्रकाशक के लिए - , , ८ और ११ मुखी।
    पुस्तक व्यवसाय से संबंधित एजेंट के लिए - , ४ और ९ मुखी।
    दार्शनिक और विचारक के लिए - , ११ और १४ मुखी।
    होटल मालिक के लिए - , १३ और १४ मुखी।
    रेस्टोरेंट मालिक के लिए - , , ६ और ११ मुखी।
    सिनेमाघर-थियेटर के मालिक या फिल्म-डिस्ट्रीब्यूटर के लिए - , , ६ और ११ मुखी।
    सोडा वाटर व्यवसाय के लिए - , ४ और १२ मुखी।
    फैंसी स्टोर, सौन्दर्य-प्रसाधन सामग्री के विक्रेताओं के लिए - , ६ और ११ मुखी रुद्राक्ष।
    कपड़ा व्यापारी के लिए - २ और ४ मुखी।
    बिजली की दुकान-विक्रेता के लिए - , , ९ और ११ मुखी।
    रेडियो दुकान-विक्रेता के लिए - , ९ और ११ मुखी।
    लकडी+ या फर्नीचर विक्रेता के लिए - , , ६ और ११ मुखी।
    ज्योतिषी के लिए - , , ११ और १४ मुखी रुद्राक्ष ।
    पुरोहित के लिए - , ९ और ११ मुखी।
    ज्योतिष तथा र्धामिक कृत्यों से संबंधित व्यवसाय के लिए - , ४ और ११ मुखी।
    जासूस या डिटेक्टिव एंजेसी के लिए - , , , ११ और १४ मुखी।
    जीवन में सफलता के लिए - , ११ और १४ मुखी।
    जीवन में उच्चतम सफलता के लिए - , ११, १४ और २१ मुखी।
विषेष इनके साथ-साथ ५ मुखी रुद्राक्ष भी धारण किया जाना चाहिए।

 



राशि के अनुसार लगाएं पेड़

मेष राशि वाले व्यक्ति आंवला, वृषभ राशि वाले जामुन, मिथुन वाले शीशम, कर्क वाले बांस, सिंह वाले बरगद, कन्या वाले बिल्व, तुला वाले अर्जुन, वृश्चिक वाले मोलसरी, धनु राशि वाले कटहल, मकर राशि वाले खेजड़ी, कुंभ राशि वाले कदंब मीन राशि वाले आम का पौधा लगा सकते हैं।